Friday, May 22, 2020

संस्कॄत का जादू

संस्कृत में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं जो उसे अन्य सभी भाषाओं से उत्कृष्ट और विशिष्ट बनाती हैं।


१-  अनुस्वार (अं ) और विसर्ग (अ:) :- 

संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण और लाभदायक व्यवस्था है, अनुस्वार और विसर्ग।
पुल्लिंग के अधिकांश शब्द विसर्गान्त होते हैं —
यथा- राम: बालक: हरि: भानु: आदि। और
नपुंसक लिंग के अधिकांश शब्द अनुस्वारान्त होते हैं—
यथा- जलं वनं फलं पुष्पं आदि।
अब जरा ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है। अर्थात् जितनी बार विसर्ग का उच्चारण करेंगे उतनी बार कपालभाति प्रणायाम अनायास ही हो जाता है। जो लाभ कपालभाति प्रणायाम से होते हैं, वे केवल संस्कृत के विसर्ग उच्चारण से प्राप्त हो जाते हैं।
उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही क्रिया है । भ्रामरी प्राणायाम में श्वास को नासिका के द्वारा छोड़ते हुए भौंरे की तरह गुंजन करना होता है, और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है। अत: जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होगा , उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: हो जावेगा।
कपालभाति और भ्रामरी प्राणायामों से क्या लाभ है? यह बताने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि स्वामी रामदेव जी जैसे संतों ने सिद्ध करके सभी को बता दिया है। मैं तो केवल यह बताना चाहता हूँ कि संस्कृत बोलने मात्र से उक्त प्राणायाम अपने आप होते रहते हैं।
जैसे हिन्दी का एक वाक्य लें- '' राम फल खाता है``
इसको संस्कृत में बोला जायेगा- '' राम: फलं खादति"
राम फल खाता है ,यह कहने से काम तो चल जायेगा ,किन्तु राम: फलं खादति कहने से अनुस्वार और विसर्ग रूपी दो प्राणायाम हो रहे हैं। यही संस्कृत भाषा का रहस्य है।
संस्कृत भाषा में एक भी वाक्य ऐसा नहीं होता जिसमें अनुस्वार और विसर्ग न हों। अत: कहा जा सकता है कि संस्कृत बोलना अर्थात् चलते फिरते योग साधना करना।

२- शब्द-रूप :-

संस्कृत की दूसरी विशेषता है शब्द रूप। विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक ही रूप होता है,जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 25 रूप होते हैं। जैसे राम शब्द के निम्नानुसार २५ रूप बनते हैं।
यथा:- रम् (मूल धातु)
राम: रामौ रामा:
रामं रामौ रामान्
रामेण रामाभ्यां रामै:
रामाय रामाभ्यां रामेभ्य:
रामत् रामाभ्यां रामेभ्य:
रामस्य रामयो: रामाणां
रामे रामयो: रामेषु
हे राम! हे रामौ! हे रामा:!
ये २५ रूप सांख्य दर्शन के २५ तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस प्रकार पच्चीस तत्वों के ज्ञान से समस्त सृष्टि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है, वैसे ही संस्कृत के पच्चीस रूपों का प्रयोग करने से आत्म साक्षात्कार हो जाता है। और इन २५ तत्वों की शक्तियाँ संस्कृतज्ञ को प्राप्त होने लगती है।
सांख्य दर्शन के २५ तत्व निम्नानुसार हैं।-
आत्मा (पुरुष)
(अंत:करण ४ ) मन बुद्धि चित्त अहंकार
(ज्ञानेन्द्रियाँ ५ ) नासिका जिह्वा नेत्र त्वचा कर्ण
(कर्मेन्द्रियाँ ५) पाद हस्त उपस्थ पायु वाक्
(तन्मात्रायें ५ ) गन्ध रस रूप स्पर्श शब्द
( महाभूत ५ ) पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश

३- द्विवचन :-

संस्कृत भाषा की तीसरी विशेषता है द्विवचन। सभी भाषाओं में एक वचन और बहु वचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है। इस द्विवचन पर ध्यान दें तो पायेंगे कि यह द्विवचन बहुत ही उपयोगी और लाभप्रद है।
जैसे :- राम शब्द के द्विवचन में निम्न रूप बनते हैं:- रामौ , रामाभ्यां और रामयो:। इन तीनों शब्दों के उच्चारण करने से योग के क्रमश: मूलबन्ध ,उड्डियान बन्ध और जालन्धर बन्ध लगते हैं, जो योग की बहुत ही महत्वपूर्ण क्रियायें हैं।

४- सन्धि :-

संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। ये संस्कृत में जब दो शब्द पास में आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है। उस बदले हुए उच्चारण में जिह्वा आदि को कुछ विशेष प्रयत्न करना पड़ता है।ऐंसे सभी प्रयत्न एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति के प्रयोग हैं।
''इति अहं जानामि" इस वाक्य को चार प्रकार से बोला जा सकता है, और हर प्रकार के उच्चारण में वाक् इन्द्रिय को विशेष प्रयत्न करना होता है।
यथा:- १ इत्यहं जानामि।
२ अहमिति जानामि।
३ जानाम्यहमिति ।
४ जानामीत्यहम्।
इन सभी उच्चारणों में विशेष आभ्यंतर प्रयत्न होने से एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का सीधा प्रयोग अनायास ही हो जाता है। जिसके फल स्वरूप मन बुद्धि सहित समस्त शरीर पूर्ण स्वस्थ एवं नीरोग हो जाता है।
इन समस्त तथ्यों से सिद्ध होता है कि संस्कृत भाषा केवल विचारों के आदान-प्रदान की भाषा ही नहीं ,अपितु मनुष्य के सम्पूर्ण विकास की कुंजी है। यह वह भाषा है, जिसके उच्चारण करने मात्र से व्यक्ति का कल्याण हो सकता है। इसीलिए इसे देवभाषा और अमृतवाणी कहते है।




Tuesday, April 7, 2020

Keep Calm and Cool


जीवन में उतार-चढ़ाव लगे रहते हैं। जरूरत है तो बस खुद को बैलेंस्ड रखने की। कई बार आसपास के शोर के कारण परेशानी होती है तो कई बार दिमाग में चल रही हलचल में खुद को बैलेंस्ड रखना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में दिमाग को शांत रखने के लिए कुछ बातें फायदेमंद रहेंगी। जानिए इनके बारे में-

1. किसी एक बुरी बात पर न टिकें

पूरी किताब की कहानी उसके एक चैप्टर में नहीं होती है। न ही कोई एक चैप्टर पूरी कहानी बता सकता है। इसी तरह से एक गलती करने से आपके चरित्र के बारे में पता नहीं चलता है। इसलिए जिंदगी के पन्ने बदलते जाएं यानी किसी एक बात या गलती पर टिके न रहें।

2. पुरानी बातों पर अफसोस न करें

गुजरी बातों पर जितना मर्जी अफसोस जताने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसी तरह से आने वाले भविष्य को लेकर चाहे जितना एक्साइटमेंट होगा तो भी फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन आज जो आपके पास है उसके लिए भगवान को शुक्रिया कहने से बहुत फर्क पड़ेगा।

3. ध्यान रखें जिंदगी हर पल बदलती है

आप कहीं फंस गए हैं, यह केवल एक अहसास है कोई हकीकत नहीं। इसलिए यह कभी मत सोचिए कि आप कहीं फंस गए हैं। जिंदगी हर सेकंड बदलती है और उसके साथ आप भी बदलते रहते हैं।

4. सोच को काबू में रखिए

हर चीज दो बार बनती है। एक बार दिमाग में और दूसरी बार हकीकत में। इसलिए अपनी सोच को काबू में रखिए, क्योंकि आपकी सोच ही असलियत का रूप लेगी।

5. एक वक्त पर एक ही कदम बढ़ाएं

आज आपके साथ जो कुछ हो रहा है उसमें ऐसा कुछ नहीं है जो आपको आगे बढ़ने से रोकेगा। इसीलिए एक वक्त पर एक ही कदम बढ़ाएं यानी एक वक्त में एक ही काम को पूरी एकाग्रता और ईमानदारी से करें। इससे सफलता मिलने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।

6. किसी एक बुरी बात के कारण दिन बर्बाद न करें

एक पल बुरा था तो उससे बाकी पल बुरे नहीं बन जाते हैं। इसी तरह से अगर दिन में कोई एक घटना बुरी हो गई है तो उससे पूरे दिन को बर्बाद नहीं किया जा सकता है।

Health is Wealth

हम पानी क्यों ना पीये खाना खाने के बाद.!
क्या कारण है.?
हमने दाल खाई, हमने सब्जी खाई, हमने रोटी खाई, हमने दही खाया, लस्सी पी, दूध, दही, छाझ, लस्सी, फल आदि.!  ये सब कुछ भोजन के रूप मे हमने ग्रहण किया ये सब कुछ हमको उर्जा देता है और पेट उस उर्जा को आगे ट्रांसफर करता है.!

पेट मे एक छोटा सा स्थान होता है
जिसको हम हिंदी मे कहते है "अमाशय"
उसी स्थान का संस्कृत नाम है "जठर"
उसी स्थान को अंग्रेजी मे कहते है
"epigastrium"
ये एक थेली की तरह होता है और यह जठर
हमारे शरीर मे सबसे महत्वपूर्ण है  क्योंकि सारा खाना सबसे पहले इसी मे आता है।
ये बहुत छोटा सा स्थान हैं इसमें अधिक से अधिक 350gms खाना आ सकता है.!
हम कुछ भी खाते है सब ये अमाशय मे आ जाता है.! आमाशय मे अग्नि प्रदीप्त होती है

उसी को कहते हे "जठरगनि".!
ये जठराग्नि है
वो अमाशय मे प्रदीप्त होने वाली आग है ।
ऐसे ही पेट मे होता है
जेसे ही आपने खाना खाया
की जठराग्नि प्रदीप्त हो गयी..t
यह ऑटोमेटिक है, जेसे ही अपने रोटी का पहला टुकड़ा मुँह मे डाला
की इधर जठराग्नि प्रदीप्त हो गई.! ये अग्नि तब तक जलती हे जब तक खाना' पचता है |

अब अपने खाते ही
गटागट पानी पी लिया
और खूब ठंडा पानी पी लिया. और कई लोग तो बोतल पे बोतल पी जाते है.! अब जो आग (जठराग्नि) जल रही थी वो बुझ गयी.! आग अगर बुझ गयी.तो खाने की पचने की जो क्रिया है वो रुक गयी.!

You suffer from IBS,
Never CURABLE

अब हमेशा याद रखें
खाना जाने पर
हमारे पेट में दो ही क्रिया होती है,
एक क्रिया है
जिसको हम कहते हे "Digestion"
और दूसरी है "fermentation" फर्मेंटेशन का मतलब है  ..सडना...!और| डायजेशन का मतलब हे ...पचना....! 

आयुर्वेद के हिसाब से आग जलेगी तो खाना पचेगा, खाना पचेगा तो उससे रस बनेगा.! जो रस बनेगा तो उसी रस से मांस, मज्जा, रक्त, वीर्य, हड्डिया, मल, मूत्र और अस्थि बनेगा और सबसे अंत मे मेद बनेगा.! ये तभी होगा जब खाना पचेगा.!

यह सब हमें चाहिए.
ये तो हुई खाना पचने की बात.
अब जब खाना सड़ेगा तब क्या होगा..? खाने के सड़ने पर सबसे पहला जहर जो बनता है वो हे यूरिक एसिड (uric acid)

कई बार आप डॉक्टर के पास जाकर कहते है की मुझे घुटने मे दर्द हो रहा है, मुझे कंधे-कमर मे दर्द हो रहा है तो डॉक्टर कहेगा आपका यूरिक एसिड बढ़ रहा है आप ये दवा खाओ, वो दवा खाओ यूरिक एसिड कम करो|

और एक दूसरा उदाहरण खाना जब खाना सड़ता है, तो यूरिक एसिड जेसा ही एक दूसरा विष बनता है जिसको हम कहते हे LDL (Low Density lipoprotien) माने खराब कोलेस्ट्रोल (cholesterol)

जब आप
ब्लड प्रेशर(BP) चेक कराने
डॉक्टर के पास जाते हैं
तो वो आपको कहता है (HIGH BP)

हाई-बीपी है
आप पूछोगे...
कारण बताओ.?

तो वो कहेगा
कोलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है |

आप ज्यादा पूछोगे
की कोलेस्ट्रोल कौनसा बहुत है ?

तो वो आपको कहेगा
LDL बहुत है |

इससे भी ज्यादा
खतरनाक एक विष हे 
वो है.... VLDL
(Very Low Density Lipoprotien)

ये भी कोलेस्ट्रॉल जेसा ही विष है।
अगर VLDL बहुत बढ़ गया
तो आपको भगवान भी नहीं बचा सकता|

खाना सड़ने पर
और जो जहर बनते है
उसमे एक ओर विष है
जिसको अंग्रेजी मे हम कहते है triglycerides.!

जब भी डॉक्टर
आपको कहे
की आपका "triglycerides" बढ़ा हुआ हे
तो समझ लीजिए
की आपके शरीर मे
विष निर्माण हो रहा है |

तो कोई यूरिक एसिड के नाम से कहे,
कोई कोलेस्ट्रोल के नाम से कहे,
कोई LDL -VLDL के नाम से कहे
समझ लीजिए
की ये विष हे
और ऐसे विष 103 है |

ये सभी विष
तब बनते है
जब खाना सड़ता है |

मतलब समझ लीजिए
किसी का कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ है
तो एक ही मिनिट मे ध्यान आना चाहिए
की खाना पच नहीं रहा है ,

कोई कहता हे
मेरा triglycerides बहुत बढ़ा हुआ है
तो एक ही मिनिट मे डायग्नोसिस कर लीजिए आप...!
की आपका खाना पच नहीं रहा है |

कोई कहता है
मेरा यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है
तो एक ही मिनिट लगना चाहिए समझने मे
की खाना पच नहीं रहा है |

क्योंकि खाना पचने पर
इनमे से कोई भी जहर नहीं बनता.!

खाना पचने पर
जो बनता है
वो है....
मांस, मज्जा, रक्त, वीर्य, हड्डिया, मल, मूत्र, अस्थि.!

और

खाना नहीं पचने पर बनता है....
यूरिक एसिड,
कोलेस्ट्रोल,
LDL-VLDL.!

और यही
आपके शरीर को
रोगों का घर बनाते है.!

पेट मे बनने वाला यही जहर
जब ज्यादा बढ़कर खून मे आते है !
तो खून दिल की नाड़ियो मे से निकल नहीं पाता
और रोज थोड़ा थोड़ा कचरा
जो खून मे आया है
इकट्ठा होता रहता है
और एक दिन नाड़ी को ब्लॉक कर देता है
जिसे आप
heart attack कहते हैं.!

तो हमें जिंदगी मे ध्यान इस बात पर देना है
की जो हम खा रहे हे
वो शरीर मे ठीक से पचना चाहिए
और खाना ठीक से पचना चाहिए
इसके लिए पेट मे
ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी ही चाहिए|

क्योंकि
बिना आग के खाना पचता नहीं हे
और खाना पकता भी नहीं है

महत्व की बात
खाने को खाना नहीं
खाने को पचाना है |

आपने क्या खाया कितना खाया
वो महत्व नहीं हे.!

खाना अच्छे से पचे
इसके लिए वाग्भट्ट जी ने सूत्र दिया.!

"भोजनान्ते विषं वारी"

(मतलब
खाना खाने के तुरंत बाद
पानी पीना
जहर पीने के बराबर है)

इसलिए खाने के
तुरंत बाद पानी
कभी मत पिये..!

अब आपके मन मे सवाल आएगा
कितनी देर तक नहीं पीना.?

तो 1 घंटे 48 मिनट तक नहीं पीना !

अब आप कहेंगे
इसका
क्या calculation हैं.?

बात ऐसी है....!

जब हम खाना खाते हैं
तो जठराग्नि द्वारा
सब एक दूसरे मे
मिक्स होता है
और फिर खाना पेस्ट मे बदलता हैं.!

पेस्ट मे बदलने की क्रिया होने तक
1 घंटा 48 मिनट का समय लगता है !

उसके बाद जठराग्नि कम हो जाती है.!

(बुझती तो नहीं लेकिन बहुत धीमी हो जाती है)

पेस्ट बनने के बाद
शरीर मे रस बनने की
प्रक्रिया शुरू होती है !

तब हमारे शरीर को
पानी की जरूरत होती हैं।

तब आप जितना इच्छा हो
उतना पानी पिये.!

जो बहुत मेहनती लोग है
(खेत मे हल चलाने वाले,
रिक्शा खीचने वाले,
पत्थर तोड़ने वाले)

उनको 1 घंटे के बाद ही
रस बनने लगता है
उनको घंटे बाद
पानी पीना चाहिए !

अब आप कहेंगे
खाना खाने के पहले
कितने मिनट तक पानी पी सकते हैं.?

तो खाना खाने के
45 मिनट पहले तक
आप पानी पी सकते हैं !

अब आप पूछेंगे
ये मिनट का calculation....?

बात ऐसी ही
जब हम पानी पीते हैं
तो वो शरीर के प्रत्येक अंग तक जाता है !

और अगर बच जाये
तो 45 मिनट बाद मूत्र पिंड तक पहुंचता है.!

तो पानी - पीने से मूत्र पिंड तक आने का समय 45 मिनट का है !

तो आप खाना खाने से
45 मिनट पहले ही
पाने पिये.!

इसका जरूर पालन करे..!

अधिक अधिक लोगो को बताएं.!

Saturday, May 14, 2016

संस्कृत ध्येय वाक्यानि


1-आर्य समाज- - कृण्वन्तो विश्वमार्यम
2-आर्य वीर दल- - अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्तु
3-भारत सरकार- - सत्यमेव जयते
4-लोक सभा- - धर्मचक्र प्रवर्तनाय
5-उच्चतम न्यायालय- - यतो धर्मस्ततो जयः
6-आल इंडिया रेडियो -सर्वजन हिताय सर्वजनसुखाय

7-दूरदर्शन - सत्यं शिवम् सुन्दरम
8-गोवा राज्य सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।
9-भारतीय जीवन बीमा निगम- - योगक्षेमं वहाम्यहम्
10-डाक तार विभाग- - अहर्निशं सेवामहे
11-श्रम मंत्रालय- - श्रम एव जयते
12-भारतीय सांख्यिकी संस्थान- - भिन्नेष्वेकस्य दर्शनम्
13-थल सेना- - सेवा अस्माकं धर्मः
14-वायु सेना- - नभःस्पृशं दीप्तम्
15-जल सेना- - शं नो वरुणः
16-मुंबई पुलिस- - सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय
17-हिंदी अकादमी - अहम् राष्ट्री संगमनी वसूनाम
18-भारतीय राष्ट्रीय विज्ञानं अकादमी -हव्याभिर्भगः सवितुर्वरेण्यं
19-भारतीय प्रशासनिक सेवा अकादमी- - योगः कर्मसु कौशलं
20-विश्वविद्यालय अनुदान आयोग- - ज्ञान-विज्ञानं विमुक्तये
21-नेशनल कौंसिल फॉर टीचर एजुकेशन - गुरुः गुरुतामो धामः
22-गुरुकुल काङ्गडी विश्वविद्यालय-ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत
23-इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय - ज्योतिर्व्रणीततमसो विजानन
24-काशी हिन्दू विश्वविद्यालय- : विद्ययाऽमृतमश्नुते
25-आन्ध्र विश्वविद्यालय- - तेजस्विनावधीतमस्तु
26-बंगाल अभियांत्रिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय,
27-शिवपुर- - उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान् निबोधत
28-गुजरात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय -आ
29-नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः
30-संपूणानंद संस्कृत विश्वविद्यालय- - श्रुतं मे गोपय
31-श्री वैंकटेश्वर विश्वविद्यालय- - ज्ञानं सम्यग् वेक्षणम् 32-कालीकट विश्वविद्यालय- - निर्मय कर्मणा श्री
33-दिल्ली विश्वविद्यालय- - निष्ठा धृति: सत्यम्
34-केरल विश्वविद्यालय- - कर्मणि व्यज्यते प्रज्ञा
35-राजस्थान विश्वविद्यालय- - धर्मो विश्वस्यजगतः प्रतिष्ठा
36-पश्चिम बंगाल राष्ट्रीय न्यायिक विज्ञान विश्वविद्यालय- - युक्तिहीने विचारे तु धर्महानि: प्रजायते
37-वनस्थली विद्यापीठ- सा विद्या या विमुक्तये।
38-राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्-विद्याsमृतमश्नुते।
39-केन्द्रीय विद्यालय- - तत् त्वं पूषन् अपावृणु
40-केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड- - असतो मा सद् गमय
41-प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, त्रिवेन्द्रम - कर्मज्यायो हि अकर्मण:
42-देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर -धियो यो नः प्रचोदयात्
43-गोविंद बल्लभ पंत अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पौड़ी -तमसो मा ज्योतिर्गमय
44-मदन मोहन मालवीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय,गोरखपुर- - योगः कर्मसु कौशलम्
45-भारतीय प्रशासनिक कर्मचारी महाविद्यालय, हैदराबाद- संगच्छध्वं संवदध्वम्
46-इंडिया विश्वविद्यालय का राष्ट्रीय विधि विद्यालय- धर्मो रक्षति रक्षितः
47-संत स्टीफन महाविद्यालय, दिल्ली- - सत्यमेव विजयते नानृतम्
48-अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान- - शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम्
49-विश्वेश्वरैया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, नागपुर -योग: कर्मसु कौशलम्
50-मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान,इलाहाबाद- - सिद्धिर्भवति कर्मजा
51-बिरला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, पिलानी -ज्ञानं परमं बलम्
52-भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर - योगः कर्मसुकौशलम्
53-भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई- - ज्ञानं परमं ध्येयम्
54-भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर -तमसो मा ज्योतिर्गमय
55-भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान चेन्नई -सिद्धिर्भवति कर्मजा
56-भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की - श्रमं विना नकिमपि साध्यम्
57-भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद -विद्या विनियोगाद्विकास:
58-भारतीय प्रबंधन संस्थान बंगलौर- - तेजस्वि नावधीतमस्तु
59-भारतीय प्रबंधन संस्थान कोझीकोड - योगः कर्मसु कौशलम्
60-सेना ई एम ई कोर- - कर्मह हि धर्मह
61-सेना राजपूताना राजफल- -- वीर भोग्या वसुन्धरा
62-सेना मेडिकल कोर- --सर्वे संतु निरामया ..
63-सेना शिक्षा कोर- -- विदैव बलम
64-सेना एयर डिफेन्स- -- आकाशेय शत्रुन जहि
65-सेना ग्रेनेडियर रेजिमेन्ट- -- सर्वदा शक्तिशालिं
66-सेना राजपूत बटालियन- -- सर्वत्र विजये
67-सेना डोगरा रेजिमेन्ट- -- कर्तव्यम अन्वात्मा
68-सेना गढवाल रायफल- -- युद्धया कृत निश्चया
69-सेना कुमायू रेजिमेन्ट- -- पराक्रमो विजयते
70-सेना महार रेजिमेन्ट- -- यश सिद्धि
71-सेना जम्मू काश्मीर रायफल- - प्रस्थ रणवीरता
72-सेना कश्मीर लाइट इंफैन्ट्री- -- बलिदानं वीर लक्षयं
73-सेना इंजीनियर रेजिमेन्ट- - सर्वत्र
74-भारतीय तट रक्षक-वयम् रक्षामः
75-सैन्य विद्यालय -- युद्धं प्र्गायय
76-सैन्य अनुसंधान केंद्र- -- बालस्य मूलं विज्ञानम-
77-नेपाल सरकार- - जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी 

Monday, February 29, 2016

स्वच्छभारताभियानम्

---- स्वच्छभारताभियानम् -----
(हिन्दी: - स्वच्छ भारत अभियान, आङ्ग्ल: - Swachh Bharat Abhiyan) इत्याख्यं महाभियानं भारतगणराज्यस्य प्रधानमन्त्रिणानरेन्द्र मोदीमहाभागेन उद्घोषितम्। २०१४ तमस्य वर्षस्य अप्रैल-मासस्य द्वितीये (२ / १०/ २०१४) दिनाङ्के स्वच्छभारताभियानस्य आरम्भः अभवत् । २/१० दिनाङ्के भारतगणराज्यस्य पूर्व प्रधानमन्त्रिणः लाल बहादूर शास्त्री-महोदयस्य, राष्ट्रपितुःमहात्मनः च जन्मदिवसत्वेन आभारतम् उत्सवः आचर्यते । तयोः महापुरुषयोः संस्मरणार्थं २/१० दिने तस्य स्वच्छभारताभियानस्य आरम्भः अभवत् ।
----- इतिहास -----
२०१४ तमस्य वर्षस्य अगस्त-मासस्य पञ्चदशे (१५/८/२०१४) दिनाङ्के स्वतन्त्रतादिनपर्वणिभारतगणराज्यस्य प्रधानमन्त्रिणानरेन्द्र मोदी-महाभागेन उद्घोषणा कृता आसीत् यत्, स्वच्छभारताभियानं २/१० दिनाङ्कात्महात्मजयन्तीपर्वदिनात्आरप्सयते इति । २०१४ तमस्य वर्षस्य अक्तूबर-मासस्य द्वितीये (२/१०/२०१४) दिनाङ्केनवदेहली-महानगरस्थे राजघाटेप्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी भारतंन्यवेदयत्, "सर्वे स्वच्छभारताभियाने योगदानं यच्छन्तु" इति । तस्मिन् दिने स्वयंप्रधानमन्त्री स्वहस्ते मार्जनीं धृत्वानवदेहली-महानगरस्थे मन्दिरमार्गे स्वच्छताकार्यं प्रारभत ।
---- अभियानस्य उद्देश्य -----
वर्तमानभारतदेशः आधुनिकः देशः इति आविश्वं चर्चा अस्ति । सः देशःचन्द्रयानं निर्माय चन्द्रारोहणं कृतवान्, परन्तु अद्यापि तस्य देशस्य नागरिकाः अनावृत्ते स्थले (on open place) शौचं कुर्वन्ति । यत्र कुत्रापि अवकरं प्रक्षिपन्ति । ते यत्र कुत्रापि ष्ठीवन्ति (थूँकते हैं) । एतादृशैः वाक्यैः देशाभिमानिनः बहुपीडाम् अनुभवन्ति । वर्तमानभारते ७२% जनाः अनावृत्ते स्थले (on open place) शौचं कुर्वन्ति। तेषु अधिकाः जनाः ग्रामवासिनः सन्ति । वृक्षावरणेषु, कृषिक्षेत्रेषु, मार्गस्य समीपं च अधिकाः जनाः शौचं कुर्वन्ति । तेन अनेकाः समस्याः समुत्पद्यन्ते । बालकानाम् अकालमृत्युः, सङ्क्रमणयुक्तानां रोगाणां विस्तारः, शौचस्थानं जनविहीनम् एव भवति, अतः महिलानांबलात्कारस्य घटनाः अधिकाः भवन्ति इत्यादयः अनेकाः समस्याः सन्ति । तासां समस्यानां निवारणं भवेत्, अतः स्वच्छभारताभियानस्य परिकल्पना समुद्भूता । उक्तस्य उद्देश्यस्य पूर्त्यै एव अभियानस्यास्य आरम्भः अभवत् । परन्तु अनेन सह अन्यानि कारणानि अपि सम्मिलितानि आसन् ।
२०१९ तमस्य वर्षस्य अक्तूबर-मासस्य द्वितीये (२/१०/२०१९) दिनाङ्के महात्मनः १५० तमा जन्मजयन्ती अस्ति । यतो हिमहात्मनः प्रियतमेषु कार्येषु स्वच्छताकार्यम् अपि अन्यतमम् आसीत् । अतः तस्य १५० तमायाः जन्मशताब्द्याः दिने महात्मनाईप्सितं स्वच्छं भारतं तस्मै समर्पयामः इति अस्य अभियानस्य अपरः उद्देशः वर्तते । एतत् अभियानं पञ्चवर्षात्मकम् अस्ति । स्वच्छभारताभियानंभारतगणराज्यस्य सर्वकारेण सञ्चालितम् अभियानम् अस्ति । एतेषु पञ्चवर्षेषु ४,०४१ नगराणां वीथिकाः, मार्गान्, क्षेत्राणि च स्वच्छं कर्तुम् तस्य अभियानस्य उद्घोषः अभवत् ।
लाल बहादूर शास्त्री-महोदयेनअस्मभ्यं मन्त्रः दत्तः आसीत् यत्, 'जय जवान, जय किसान' इति । तस्य आह्वानेन आभारतं जनाः कृषिक्रान्तिम् अकुर्वन् । यदा तेनभारतस्य आह्वानं कृतम् आसीत्, तदा भारतगणराज्यस्य सामान्यात् अतिसामान्यः जनः अपि तस्य उद्घोषं सफलीकर्तुं प्रयासम् अकरोत् । तथैव एतस्य अभियानस्य कृते अपि भवतु इति । यदि तस्मिन् काले भारतम्अकरोत्, तर्हि अद्यापि करिष्यति इत्यपि अन्यतमः उद्देशः 
---- अभियानस्य प्रारूपम् ----
स्वच्छभारताभियानं तु भारतीयानां कृते उद्घोषितम् अभियानं वर्तते । अतः केवलं राजनैतिकक्षेत्रीयाः, सर्वकारस्य जनाः, कर्मकराः च अभियानेऽस्मिन् कार्यं कुर्युः इति अयोग्यं मन्यते । एवं हि भारतवर्षम् अत्यन्तं विशालं वर्तते, सर्वकारस्य साधनानि न्यूनानि भवन्ति अभियानाय । अतः सर्वकारेण, सामाजिकसंस्थाभिः, नागरिकैः च मिलित्वा कृतः प्रयासः एव भारतं स्वच्छं कर्तुं शक्नोति । सः प्रयासः कीदृशः भवेत् चेत्,
१. अनावृत्ते स्थले (on open place) शौचसमस्यायाः निराकरणम् ।
२. आरोग्यविघातकानां शौचालयानां स्थाने फ्लश्-शौचालयानां संस्थापनं करणीयम् ।
३. To Eradicate manual scavenging
४. नगरपालिकायाः स्थूल-अपशिष्टस्य (Municipal solid waste - MSW) सङ्ग्रहणं तथा तस्य स्थूलापशिष्टस्य वैज्ञानिकरीत्या प्रसंस्करणं/नाशः करणीयः । यदि तस्य स्थूलापशिष्टस्य प्रक्रियानन्तरं पुनरुपयोगः शक्यः, तर्हि पुनरुपयोगाय प्रयासः करणीयः ।
५. जनानां व्यवहारेषु योग्यस्वच्छतायाः अभ्यासबीजानि वपितुं प्रयासः करणीयः ।
६. जनेषु निर्मलीकरणभावनायाः उज्जागरणं, तस्य च सार्वजनिकस्वास्थ्येन सह अनुबन्धः ।
७. स्वच्छताकार्यस्य परिकल्पनायै, क्रियान्वयाय, व्यवस्थायै च क्षेत्रीयनगरनिगमविभागः बलवान् करणीयः ।
८. स्वायत्तक्षेत्रपक्षतः (Private Sector) अभियानेऽस्मिन् योगदानाय योग्यं वातावरणं निर्मातव्यं, येन धनव्ययार्थम्, अपशिष्टसङ्कलनकार्यस्य क्रियान्वयाय, अनुसंरक्षणाय (Maintenance) च सहायता भवेत् ।
----विद्यालयेभ्यः स्वच्छभारताभियानम्----
समाजस्य भविष्यं बालकाः भवन्ति । अतः अभियानेऽस्मिन् स्वच्छभविष्यस्य निर्माणार्थम् अपि प्रयासाः भविष्यन्ति । तस्य कृते विद्यालयेभ्यः भिन्नरीत्या स्वच्छताभियानस्य परियोजना सर्वकारेण कृता अस्ति । तस्यै परियोजनायै केचन मुख्यांशाः विचारिताः सन्ति ।
१. विद्यालये जलं, स्वच्छता, स्वास्थ्यरक्षा च
२. जलस्य, स्वच्छतायाः, स्वास्थ्यरक्षायाः च विद्यालयेषु स्थितिः
३. पाठ्यक्रमेषु स्वच्छविद्यालयस्य अभ्यासः
४. स्वच्छतायाः परिकल्पना (विद्यालयस्तरे)
५. स्वच्छताभियानस्य क्रियान्वयः
६. मार्गेषु, यात्रायां च स्वच्छतायाः योग्यपद्धतीनां व्यवहारः सामुहिकहस्तप्रक्षालनस्य व्यवस्था
७. पाकशालायाः स्वच्छतायै मार्गदर्शनं, व्यवस्था च
८. विद्यार्थिनां कृते, विद्यार्थिनीनां च कृते भिन्नशौचालयस्य सुविधा
उक्तानाम् अंशानां क्रियान्वयदृष्ट्या सर्वकारः प्रत्यक्षं नियन्त्रणं करिष्यति । यतो हि भारतगणराज्यस्य विद्यालयेषु स्वच्छतायाः अभावः विद्यते । भारतसर्वकारस्य संशोधनानुसारं १९.३ कोटिसङ्ख्याकेषु विद्यार्थिषु ५ कोटिसङ्ख्याकानाम् अपि विद्यार्थिनां कृते पेयजलस्य सुविधा नास्ति । आभारते १,५२,२३१ विद्यालयेषु विद्यार्थिनां कृते शौचालयाः न सन्ति । तथा च १,०१,४४३ विद्यालयेषु विद्यार्थिनीनां कृते शौचालयाः न सन्ति । येषु विद्यालयेषु शौचालयः अस्ति, तेषु जलस्य व्यवस्था एव नास्ति । आभारते २७.४% विद्यालयेषु विद्यार्थिशौचालये जलस्य व्यवस्था नास्ति । तथा च ३१.५% ५४ विद्यालयेषु विद्यार्थिनीनां शौचालये जलव्यवस्था नास्ति  ।
-----विद्यालयीयप्रवृत्तिषु स्वच्छताभियानम्----
१. विद्यालयेषु कक्षायाः समये विद्यार्थिभिः सह स्वच्छतायाः विषये चर्चा भवेत् । स्वच्छतायाः विभिन्नानां विषयाणां महात्मनःविचारैः सह सम्बन्धं संस्थाप्य विद्यार्थिषु स्वच्छतायै जागरूकता उद्भावनीया ।
२. कक्षा, प्रयोगशाला, पुस्तकालयः इत्यादीनां प्रकोष्ठानां स्वच्छता करणीया ।
३. विद्यालये स्थापितां मूर्तिं (सरस्वतीमातुः, संस्थायाः स्थापकस्य मूर्तिं) प्रतिदिनं धावेत् (सम्मार्जयेत्) । तथा च संस्थापकस्य योगदानस्य विषयेऽपि चर्चा करणीया ।
४. शौचालय-पेयजलस्थानादिकं च स्वच्छं करणीयम् ।
५. पाकशाला-भाण्डागारादिकञ्च स्वच्छं करणीयम् ।
६.निबन्धलेखने, वाद-विवादस्पर्धायां, चित्रकलायां च स्वच्छतासम्बद्धाः प्रतियोगिताः आयोजनीयाः ।

Wednesday, July 1, 2015

10 लकारों का अनमोल ज्ञान

>>> संस्कृत में काल दश भागों में विभाजित है जिनको दश लकार
कहा जाता है :--
***************
०१ ) लट् ---- ल् + अ + ट्
०२ ) लिट् ---- ल् + इ + ट्
०३ ) लुट् ---- ल् + उ + ट्
०४ ) लृट् ---- ल् + ऋ + ट्
०५ ) लेट् ---- ल् + ए + ट्
०६ ) लोट् ---- ल् + ओ + ट्
***************
०७ ) लङ् ---- ल् + अ + ङ्
०८ ) लिङ्---- ल् + इ + ङ्
०९ ) लुङ्---- ल् + उ + ङ्
१० ) लृङ्---- ल् + ऋ + ङ्
***************
इनको स्मरण करने की विधी ये है कि :-
***************
ल् में ( अ इ उ ऋ ए ओ ) क्रम से जोड़ दो । और पहले कर्मों में
( ट् ) जोड़ते जाओ । फिर बाद में ( ङ् ) जोड़ते जाओ जब तक कि
दश लकार पूरे न हो जाएँ ।
***************
इन लकारों के काल ये हैं :-
***************
(१) लट् लकार = वर्तमान काल । जैसे :- राम खेलता है ।
***************
(२) लिट् = अनद्यतन परोक्ष भूतकाल । जो अपने साथ न घटित
होकर किसी इतिहास का विषय हो । जैसे :- राम ने
रावण को मारा था ।
***************
(३) लुट् लकार = अनद्यतन भविष्यत काल । जो आज का दिन छोड़
कर आगे होनो वाला हो । जैसे :- राम परसों विद्यालय
नहीं जायेगा ।
***************
(४) लृट् लकार = सामान्य भविष्य काल । जो आने वाले
किसी भी समय में होने वाला हो । जैसे :-
राम यह कार्य करेगा ।
***************
(५) लेट् लकार = यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है ईश्वर
के लिए क्योंकि वह किसी काल में बंधा
नहीं है ।
***************
(६) लोट् लकार = ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना,
प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है । जैसे :- आप जाओ , वह
खेले, तुम खाओ , क्या मैं बोलूँ ?
***************
(७) लङ् लकार = अनद्यतन भूत काल । आज का दिन छोड़ कर
किसी अन्य दिन जो हुआ हो । जैसे :- आपने उस
दिन भोजन पकाया था ।
***************
(८) लिङ् लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :--
# आशीर्लिङ् = किसी को आशिर्वाद देना
हो । जैसे :- आप जीओ , तुम सुखी रहो
आदि ।
# विधिलिङ् = किसी को विधी
बतानी हो । जैसे :- आपको पढ़ना चाहिए , मुझे जाना
चाहिए आदि ।
***************
(९) लुङ् लकार = सामान्य भूत काल । जो कभी
भी बीत चुका हो । जैसे :- मैंने खाना खाया

***************
(१०) लृङ् लकार = ऐसा भूत काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो ।
जब किसी क्रिया की असिद्धी
हो गई हो । जैसे :- यदि तूँ पढ़ता तो विद्वान बनता ।
***************
इन्हीं लकारों में सभी धातुरूप चलते हैं ।
***************